वाराणसी। दिल हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है।इसके हीं धड़कने से हम होते हैं और इसके बंद होते हीं हमारी वजूद मिट जाती है। मतलब हमारे जीवन की शुरुआत हृदय की पहली धड़कन के साथ शुरू होती है जो आखिरी धड़कन के साथ खत्म हो जाता है। हृदय की धड़कन रुकते हीं सेकेंडों में हम अपनी खोकर एक निर्जीव शरीर में तब्दील हो जाते हैं। हमारा सारा गुमान, अभिमान, अहंकार, प्रेम और ईर्ष्या सब खत्म हो जाता है। बीएचयू के कार्डियोलोजी डिपार्टमेंट के हेड डॉ ओमशंकर बताते हैं किहमारे खान – पान, रहन – सहन, सोने – जागने, अनुराग – द्वेष, आराम – व्यायाम, मानव – मानव संबंध, सोचने – समझने के तरीके से लेकर शरीर के आंतरिक और बाह्य वातावरण में होनेवाले हर छोटी – बड़ी, साकारात्मक व नकारात्मक बदलाओं का सीधा असर हमारे दिलों के ऊपर पड़ता है। मतलब हमारा दिल बहुत हीं नाजुक होता है, जिसकी रोजाना ठीक से देखभाल करने और इसे संभाल कर रखने की आवश्यकता है।
डॉ ओमशंकरलेकिन हम भारतीय इस मामले में बड़े हीं अल्हड़ और लापरवाह हैं जिसकी वजह से हमें बहुत हीं जल्द दिल का रोग लग जाता है।पश्चिमी देशों की तुलना में 15 से 20 साल पहले!
मतलब हमारे युवास्था में हीं, जब हम अपने जीवन के शिखर पर होते हैं दिल का रोग हमें मौत का शिकार बना देती है। हम अपने पीछे छोड़ जाते हैं एक युवा, बेरोजगार और असहाय विधवा पत्नी, छोटे – छोटे मासूम बच्चे और बेरोजगार बूढ़े मां – बाप! ये नुकसान सिर्फ व्यक्तिगत और पारिवारिक न होकर, सामाजिक और राष्ट्रीय भी होता है, क्योंकि युवा किसी समाज और राष्ट्र के विकास के रीढ़ की हड्डी होती है।आज से तीन दशक पहले जहां इन्फेक्शन से होनेवाली मौतें इस देश के वार्षिक मौत के आंकड़ों में अव्वल हुआ करता था, उसका स्थान 90 के दशक के बाद क्रोनिक बीमारियों ने ले ली है। निजीकरण, औद्योकीकरण और पाश्चात्यकरण हमारे देश में नई तकनीकों और मशीनों को लाने के साथ हीं हमारे आचार, विचार, व्यवहार और रहन – सहन का तरीका भी बदल डाला है।
शारीरिक श्रम का स्थान मानसिक श्रम ने ले लिया है!
हम पैदल चलने के बदले मोटराइज्ड वाहनों का इस्तेमाल करने लगे हैं। खेतों में हल की जगह ट्रैक्टरों ने ली है और पारंपरिक खेल के बदले आज हमारे बच्चे और युवाओं ने कंप्यूटर गेमों को अपना लिया है।हम सुविधाभोगी और आराम पसंद हो गए हैं।… जिससे बच्चे और युवाओं में मोटापा बढ़ने लगा है और दिमाग में तवान बढ़ा गया है।जिसका सीधा असर ब्लड प्रेशर, इन्सुलिन रेसिस्टेंस, बुरे कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि, अच्छे कोलेस्ट्रॉल की कमी और शुगर के रोगियों में भयंकर इजाफा के तौर पर देखने को मिलने लगा है।उदारीकरण ने हमारे युवाओं में पाश्चात्य व्यवहार के साथ पाश्चात्य सोच भी विकसित की है। भारतीय युवाओं का एक बड़ा वर्ग शराब, सिगरेट, तंबाकू और ड्रग्स का सेवन करने लगे हैं, जिसने आज हमारे देश में हृदय की महामारी पैदा कर डाली है औद्योकीकरण ने जहां एक तरफ वातावरण में प्रदूषण बढ़ाया वहीं दूसरी तरफ साथ में शुरू हुई ताबड़तोड़ पेड़ों की कटाई ने प्रदूषण के स्तर को लगातार बढ़ाए रखने में मददगार की भूमिका निभाई और दोनों ने मिलकर हृदय की बीमारियों की विकराल होती समस्या को और तेजी से जंगल की आग की भांति घर – घर में फैला दी।मेरे हिसाब से इस देश में हृदय रोगियों की बढ़ती संख्या में के प्रमुख कारकों में मिलावटी भोजन, कृषि उत्पाद बढ़ाने के लिए उपयोग किए जानेवाले केमिकल फर्टिलाइजर और जेनेटिकली मोडिफाइड अनाजों की भी महती भूमिका है!इस महामारी की विकराल होती समस्या को हम इस तरह से समझ सकते हैं कि यह बीमारी सरकारी आंकड़ों में इस सदी के सबसे भयावह मानी जानेवाली कोरोना महामारी से भी दस गुने जायद घातक है। हमारे देश में इस “शांत हत्यारे” बीमारी की वजह से हर वर्ष उतने हीं लोगों की आज मृत्यु होती है जितना की बीते कोविड महामारी के दौरान पूरी दुनिया में मौतें हुई।कार्डियोवैस्कुलर बीमारी आज हमारे देश में होनेवाले हर तीसरे व्यक्ति के मौत की वजह बन गई है, जिसमें आधे लोग तो 50 वर्ष से कम आयु के होते हैं। आज इस देश में हृदय अघात का शिकार होनेवाला हर तीसरा व्यक्ति 40 वर्ष से कम आयुवर्ग का युवा होता है और हर चौथे व्यक्ति के हृदय की बीमारी का कारण वायु प्रदूषण होता है।इन सब वजहों से हीं आज हमें कभी किसी नायक की, तो कभी किसी सिंगर की, तो कभी किसी हास्य कलाकार के असमय मौत की खबरें सुनने और पढ़ने को मिलने लगी हैं।पूरी दुनियां में कार्डियोवैस्कुलर बीमारी की बढ़ती संख्या को स्वास्थ जागरूकता फैलाकर नियंत्रित करने के लिए हीं “विश्व हृदय संघ” द्वारा हर वर्ष सितंबर माह में “विश्व हृदय दिवस” मनाया जाता है जो इस वर्ष के लिए आज के दिन यानी 29 सितंबर को चुना गया है।हर वर्ष “विश्व हृदय दिवस” मनाने के लिए एक थीम को चुना जाता है। इस वर्ष का थीम है “यूज हार्ट फॉर एवरी हार्ट” अर्थात सभी हार्टबको बचाने के लिए हृदय का प्रयोग करें। मतलब अपने हृदय का इस्तेमाल मानवता, प्रकृति और स्वयं की रक्षा करने के लिए करें, मनवादी बनें जिसकी घोर आवश्यकता आज के वर्तमान सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक परिदृश्यों में एम सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया को है।