काशी विश्वनाथ धाम की इतिहास पुस्तिका बताएगी लोगो को कितनी बार मुगलो ने मंदिर को मिटाने का प्रयास किया पर सफल नहीं हुए
बाबा धाम का इतिहास और कॉरिडोर की विशेषता इतिहास पुस्तिका में
वाराणसी। काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के साथ ही काशी विश्वनाथ धाम की एक इतिहास पुस्तिका भी पहले उत्तर प्रदेश और फिर पूरे देश में बांटी जायेगी जिसमें काशी विश्वनाथ धाम की विशेषताओं के साथ ही खास तौर पर उसका भी जिक्र है की किस तरह से मुगल आक्रान्ताओ ने एक दो बार नहीं बल्कि पांच बार काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर खत्म करने कोशिग की इस इतिहास पुस्तिका की पहली तस्वीर हम आपके सामने एक्सक्लूसिव लेकर आये है।वाराणसी के काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण होने जा रहा है इस दौरान काशी विश्वनाथ धाम पर एक इतिहास पुस्तिका का भी विमोचन पीएम मोदी करेंगे जो हर घर तक पहुंचेगी इस पुस्तक को संपादित किया है काशी विद्वत परिषद के विद्वानों ने और काशी विद्वत परिषद के महामंत्री राम नारायण द्विवेदी ने हमे बताया की जिस तरह से मुगल आक्रांताओं ने पांच बार आक्रमण कर मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की थी उसका जिक्र इस पुस्तक में किया गया है और ये पूरी पुस्तक मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देशन में हुई है।
द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख काशी विश्वनाथ मंदिर अनादिकाल से काशी में है। यह स्थान शिव और पार्वती का आदि स्थान है इसीलिए आदिलिंग के रूप में अविमुक्तेश्वर को ही प्रथम लिंग माना गया है। इसका उल्लेख महाभारत और उपनिषद में भी किया गया है। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था।इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था। इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
मोहम्मद तुगलक (1325) के समकालीन लेखक जिनप्रभ सूरी ने किताब ‘विविध कल्प तीर्थ’ में लिखा है कि बाबा विश्वनाथ को देव क्षेत्र कहा जाता था। लेखक फ्यूरर ने भी लिखा है कि फिरोजशाह तुगलक के समय कुछ मंदिर मस्जिद में तब्दील हुए थे। 1460 में वाचस्पति ने अपनी पुस्तक ‘तीर्थ चिंतामणि’ में वर्णन किया है कि अविमुक्तेश्वर और विशेश्वर एक ही लिंग है।