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धरती के भगवान् ने दो मासूमो को यतीम होने से बचाया 

बीएचयू के सीनियर कडियोलॉजिस्ट डॉ ओमशंकर ने पेश की इंसानियत की मिशाल   

वाराणसी। दरसल इसकी पूरी कहानी डॉ ओमशंकर ने खुद बयां की है वो बताते है की कल ऐसी हीं एक 35 वर्षीय महिला के जान बचाने का अवसर प्राप्त हुआ। वो कुछ कदम भी बिना सीना, जबरे और दोनों हाथों में असह्य दर्द के चल नहीं पा रही थी, जो उनके अंदर छुपे गंभीर हृदय की बीमारी होने की तरफ इशारा कर रहा था। उनकी निजी अस्पताल में इसी वजह से एंजियोग्राफी जांच की गई थी जिसमें अतिगंभीर बीमारी निकली थी जिनका इलाज उनके यहाँ कर पाना मुश्किल था इसलिए मेरे पास भेज दिए गए थे।मेरे लिए भी एक युवा महिला जो न तो तंबाकू का सेवन करती थी, न हीं सुगर की बीमारी से ग्रसित थी, न उनके परिवार के किसी अन्य सदस्यों में हृदय के इस तरह के गंभीर बीमारी की कोई हिस्ट्री थी और न हीं उनके खून की नालियों में सूजन होने की कोई वजह प्रतीत हो रही थी, आश्चर्यजनक था।

इलाज के बाद महिला

एंजियोग्राफी जांच में उनके बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जहां से शुरू होती है वहीं बिल्कुल चिपककर धागे जैसी हो गई दिख रही थी (पहले चित्र में लाल तीर से दिखाया गया है)। इस तरह की हृदय की बीमारी को सबसे गंभीर माना जाता है और ऐसे हीं लोग खाते-पीते, चलते-फिरते अचानक से हृदय आघात से असमय मौत के शिकार हो जाते हैं।बीमारी की गंभीरता को देखते हुए इसके दो हीं इलाज संभव थे…….या तो इनका ओपन हार्ट  (बाईपास) सर्जरी करना पड़ता, जो उम्र के हिसाब, अस्पताल में भर्ती रहने के दिनों, खर्च के हिसाब और खतरे के हिसाब सबमें महँगा पड़ता … या फिर इनके बाएं तरफ की सबसे प्रमुख नस जो 95% के आसपास सिकुड़ी हुई थी उसे हाथ/पैरों के नसों में सुई डालकर फुला दिए जाए और उसमें छल्ले/स्टेंट डाल दिये जाए, जिसे हम एंजियोप्लास्टी कहते हैं जिसके 1-2 बाद हीं मरीज बिल्कुल स्वस्थ हो जाते हैं वो भी बिना किसी चीर-फाड़ के और मात्र 50 हज़ार की खर्च पर!

आप्रेसन करने वाले डॉक्टर ओमशंकर

हमने गहन विचार-विमर्श के बाद इनके एंजियोप्लास्टी करने का निर्णय लिया, जो वाकई चुनौतीपूर्ण कार्य था। उनके हृदय के नस की स्थिति ऐसी थी कि उसमें पहले तो एंजियोप्लास्टी में उपयोग करने के लिए डाली जानेवाली तार और बैलून डालना हीं मुश्किल हो रहा था। फिर नसों की स्थिति ऐसी थी कि छल्ला डालने के बाद उसको कहाँ रक्खा जाए यह निर्धारित करना भी काफी चुनौती पूर्ण था, क्योंकि इस प्रक्रिया में हुई थोड़ी सी भी चूक मरीज की मिनटों में जान ले सकती है।बहरहाल सभी चुनौतियों को मात देकर हमलोग मरीज की जान बचाने में सफल हुए। धागे जैसी दिखनेवाली नस को हमने सभी नसों से मोटी बना दी। (दूसरी तस्वीर, लाल तीर के निशान को देखें और पहली तस्वीर से उसकी तुलना करें)।तीसरा (ऑपरेशन से पहले) और चौथा (ऑपरेशन के बाद बनाई गई) वीडियो की तुलना करके भी आप इसे आसानी से समझ सकते हैं।इस ऑपरेशन में हमारा साथ निभाने वाले टीम के सभी सदस्यों का दिल से आभार, क्योंकि उनके बगैर इस तरह का ऑपरेशन करना असंभव है।

इस महिला को मौत के मुँह से बचाना और उसके दो बच्चो तक उनकी माँ की ममता को पहुँचाना ही शायद धरती पर भगवान के दूसरे रूप बात कहती है।

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