संस्कृति

वाराणसी में सेवा भारती काशी प्रांत द्वारा आयोजित होने वाले महानाट्य जाणता राजा के टिकट का अनावरण । जानिए महानाट्य की पूरी कहानी

महानाट्य का उद्देश्य छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन के माध्यम से जनमानस में राष्ट्रप्रेम जगाना

वाराणसी। काशी में सेवा भारती काशी प्रांत की तरफ से छत्रपति शिवाजी के जीवन पर आधारित महा नाट्य जाणता राजा का आयोजन 21 नवंबर से 26 नवंबर 2023 तक किया जाएगा । ये महानाट्य काशी हिंदू विश्वविद्यालय के एमपी थियेटर ग्राउड में होगा । इस महानाट्य के टिकट का अनावरण आज वाराणसी के अतिप्राचीन जंगम बाड़ी मठ के महामंडलेश्वर ने अपने कर्णकामलों से किया । इस टिकट को जगतगुरु विश्वराध्य चंद्रशेखर शिवाचार्य महासवमी जी ने जारी किया इस अवसर पर सेवा भारती , काशी प्रांत के अध्यक्ष राहुल सिंह सहित कई गण्य मान्य नागरिक उपस्थित थे। ये महानाट्य जाणता राजा” महानाट्य में छत्रपति शिवाजी के जन्म से लेकर छत्रपति बनने तक की ऐतिहासिक गौरवगाथा को तीन घंटे के ‘जाणता राजा’ महानाट्य के जरिए दर्शाया जायेगा। मराठी भाषा में ‘जाणता राजा’ का अर्थ एक बुद्धिमान एवं दूरदर्शी शासक होता है।नाटक के प्रारम्भ में माता तुळजा भवानी की आरती होगी उसके बाद दुदुंभी और ढोल-नगाड़ो की तेज धुनों के साथ नाटक का प्रारम्भ होगा। इस नाटक में सैकड़ो अनुभवी कलाकार भाग लेंगे।

महानाट्य के टिकट का अनावरण करते हुए जाणता श्री जगद्गुरू डॉ. चंद्रशेखर शिवाचार्य महास्वामी जी

सेवा भारती, काशी प्रान्त द्वारा ‘जाणता राजा’ महानाट्य का मंचन काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में 6 बार, दिनांक 21 से 26 नवम्बर, प्रतिदिन 5.30 से 8.30 बजे तक किया जायेगा। इस आयोजन का उद्देश्य छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन के माध्यम से जनमानस में राष्ट्रप्रेम जगाना, अपनी संस्कृति, संस्कार एवं अपने गौरवशाली इतिहास को जनमानस तक पहुँचाना तथा एक कुशल शासक के गुणों से अवगत कराना एवं इससे प्राप्त सहयोग धनराशि से सेवा भारती द्वारा विभिन्न सेवा प्रकल्पों का संचालन करना।

टिक
टिकट अनवरण के दौरान सेवा भारती , काशी प्रांत के अध्यक्ष राहुल सिंह

नाटक की कहानी 300 वर्ष पूर्व शुरू होती है। महाराष्ट्र उस समय ऐश्वर्य सम्पन्न था। यहां घरों में ताले नहीं लगते थे। यहाँ के वासी दान स्वीकार करने में शर्माते थे। महाराष्ट्र- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के इन चारों गुणों से सिद्ध था। तभी भारत की भूमि पर पठानों का आक्रमण होता है। पठानों की सेना मराठाओं पर हमला कर देती है। हमले में पठानों की विजय होती है और देवगिरि हार जाता है। मुगलों द्वारा जनता पर जुल्म ढाये जाते हैं। लड़कियों और लड़कों को गुलाम बना लिया जाता है, उन्हें कोड़ों से पीटा जाता है। महिलाओं पर अत्याचार की इंतेहा हो जाती है। इस प्रकार ढाई सौ वर्ष बीत जाते हैं। मराठा गोकुल का अंत हो जाता है। हर ओर घोर अंधकार छा जाता है।

महानाट्य के दौरान के दृश्य

इस अंधकार की घड़ी में जगत् जननी माता तुळजा भवानी के रूप में जीजा बाई, शाहजी भोसले के घर पत्नी रूप में आती है। जीजा के मन में तो स्वराज बसा ही होता है। शाह जी भोसले बीजापुर आदिलशाही सल्तनत के मनसबदार होते हैं। शाहजी दो बादशाहो को जीत कर रानी जीजाबाई से मिलने पहुंचते हैं। अपनी जीत के किस्से सुनाते हैं! जीजाबाई कहती हैं कि राजे आपको मुगलों की गुलामी ने जकड़ रखा है। मराठाओं पर सैकड़ों वर्षो से ये मुगल जुल्म ढाते आए हैं। उनकी बहू बेटियों की इज्जत को तार-तार कर के रख दिया है, कभी आपको क्रोध नहीं आता। शाहजी कहते हैं रानी साहिबा हमारी तलवार 12 पुश्तों से गुलामी कर रही है। हमें एक ऐसे योद्धा की जरूरत है जो स्वराज की पताका को पूरे देश में लहरा दें।

पहाड़ियों के बीच बसे शिवनेरी किले में जीजाबाई को शिवाजी के रूप में। पुत्र की प्राप्ति होती है। शिवाजी के जन्म से पूरे किले में एक नई ऊर्जा का संचार हो जाता है। हर ओर मंगल ही मंगल होता है। शिवाजी की आंखों में जीजीबाई अपना सपना पिरोने लगती है, स्वराज का सपना, अखण्ड भारत का सपना, मुगलों से छुटकारा पाने का सपना। जीजा बाई की देखरेख में शिवाजी का युद्ध प्रशिक्षण शुरू हो जाता है। उन्हें हर हथियार चलाने का तरीका बताया जाता है। शिवाजी को तलवार सौंपते हुए जीजाबाई कहती है कि राजे आपकी तलवार में तुळजा भवानी का वास है। सहयाद्री पर्वत आपके चरणों में झुकेगा। सिंधु से लेकर कावेरी तक नदियां आपके चरण चूमेंगी। शिवाजी गनीमीकावा (छापामार युद्ध (शैली) में कुशल हो जाते हैं।

मावला तराई घाटियों में माता तुळजा भवानी का आह्वान किया जाता है। गनीमीकावा से शिवाजी तोरणगढ़ किले पर कब्जा पर लेते हैं। अफजल खान, शाहिस्ता खान जैसे क्रूर मुगल सेना नायक शिवाजी का खात्मा करने के लिए आते हैं पर मावला की घाटियों में सभी को शिवाजी के सामने मुंह की खानी पड़ती है। औरंगजेब से युद्ध करने पर शिवाजी को समझौते के तौर पर 23 किले वापस करने पड़ते हैं। तभी शिवाजी को औरंगजेब से मिलने के लिए आगरा के किले में जाना होता है जहां शिवाजी को कैद कर लिया जाता है। औरंगजेब की सेना को आँखों में धूल झोंक कर छत्रपति शिवाजी आँखों से ओझल हो जाते हैं। फिर शिवाजी के स्वराज की पताका 84 बंदरगाहों और 42 दुर्गों पर फहरा उठती है। नाटक में 17वीं शताब्दी को दर्शाया गया है। सन् 1627 से 1680 के बीच।छत्रपति शिवाजी राजे भोसले ने शासन किया। वह एक कुशल प्रशासक एवं रणनीतिकार रहे। वह उदार एवं पंथनिरपेक्ष शासक थे। गुप्तचर प्रणाली के जरिए दुश्मन छावनी की टोह लेना उनकी विशेषता थी। पर्यावरण के प्रति सचेत शिवाजी ने अपने समय में पेड़ काटने पर रोक लगा दी थी।उन्हें भारतीय नौसेना का जनक एवं तकनीकविद् भी कहा जाता है। नाटक में शिवाजी के शासन काल को तीन घंटो में समेटने की कोशिश की जायेगी तथा महाराष्ट्र के लोक नृत्यों के जरिए नाटक को भव्यता प्रदान की जायेगी।

इन जगहों से वाराणसी में महानाट्य के टिकट प्राप्त कर सकतें है 

इन स्थानों से महानाट्य के टिकट प्राप्त कर सकते है

 ‘जाणता राजा’ महानाट्य के टिकट के अनावरण के दौरान सेवा भारती काशी प्रांत के अध्यक्ष : श्री अभय सिंह उपाध्यक्ष एल समन्वयक : श्री राकेश तिवारी श्री नितिन मेहरोत्रा, डॉ. वी. बी. सिंह, श्री दीपक बजाज, श्री दीपक जायसवाल , सचिव : श्री अनिल किंजवाडेकर , सह सचिव सीए सतीश जैन, डॉ. हरेंद्र राय, श्री विपिन सिंह, श्री अमित अग्रवाल, डॉ. नीरजा माधव ,कोषाध्यक्ष: सीए हरिनारायण बिसेन उपस्तिथ रहे इसके अलावा सम्मानित सदस्य के रूप में डॉ. अनिल तिवारी, डॉ. के. के. सिंह, डॉ. एस. पी. गुप्ता, श्री त्रिभुवन सिंह, डॉ. चारूचंद्र त्रिपाठी, श्री विजय शंकर चतुर्वेदी, डॉ. राघव मिश्रा, श्री नंदलाल सिंह, श्री बृजेश सिंह, सीए एस. के. द्विवेदी, श्री राधेश्याम द्विवेदी, डॉ. सूर्यभान सिंह, श्री ज्ञानप्रकाश मिश्रा, श्री दिवाकर द्विवेदी, श्री यशवंत सिंह है और स्वागत समिति में श्री सूर्यकांत जालान, डॉ. उषा गुप्ता, डॉ. बी. डी. तिवारी, डॉ. आर. के. ओझा श्री आर. के. चौधरी, श्री राजेंद्र गोयनका, श्री गोविन्द केजरीवाल, डॉ. अजय पाण्डेय श्री अजय त्रिवेदी, श्री प्रदीप अग्रवाल, श्री दीपक माहेश्वरी, श्री दिनेश गर्ग, श्री संजय गुप्ता श्री भोला नाथ मिश्रा, श्री राजकुमार कोठारी, श्री प्रहलाद दास गुप्ता. डॉ. के. के. त्रिपाठी डॉ. मधुकर राय, श्री संतोष कुमार सिंह, प्रो. माधव रटाटे, डॉ. अविनाश चंद्र सिंह, प्रो. बी.सी. कापरी डॉ. सुभाष सिंह, श्री नरेंद्र सिंह, श्री सुरेंद्र कुमार सिंह, श्री संतोष सिंह, श्री नागेश्वर सिंह, श्री राजीव गुप्ता श्री सुभाष यादव, श्री संजीव सिंह, डॉ. सुकदेव त्रिपाठी, डॉ. विद्यासागर पाण्डेय, श्री अजय सिंह श्री अरबिन्द भालोटिया, श्री अनिल जैन, श्री देवाशीष दास, श्री गजानन जोशी, श्री वी. वी. सुन्दर शास्त्री श्री वेंकटरमण घनपाठी, श्री चेल्ला अन्नपूर्णा प्रसाद एवं श्री सुब्रमण्यम मणि थे।

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