धर्म
वाराणसी में 80 हजार वर्षो तक भगवान विष्णु ने तपस्या कर अपने चक्र से बनाया था कुंड ,शिव और पार्वती भी लगा चुके है डुबकी
यही शिव की मणि और पार्वती का कुण्डल गिर गया ,तभी से इसका नाम मणिकर्णिका कुंड पड़ा
वाराणसी। विश्व की प्राचीनतम नगरी काशी अपने माहात्म्य और विशेता के लिए पुरे विश्व में जानी और पहचानी जाती है। जिसको देखने और जानने देश और विदेश से लोग आते रहते है। आपको काशी की एक ऐसी प्राचीन जगह के बारे में बता रहा जो गंगा अवतरण के पहले का माना जाता है। इस बात का उल्लेख स्कन्द पुराण के काशीखण्ड में भी दर्ज है। गंगा के किनारे स्थित इस जगह को मणिकर्णिका कुंड कहते है इसे भगवान् विष्णु ने अपने चक्र से बनाया था। इस लिए इसे मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी तीर्थ भी कहते है।
मणिकर्णिकाकुण्ड घाट तल से करीब 25 फिट निचे स्थित है कुंड में जाने के लिए चारो तरफ से 17 -17 सीढिया बानी हुयी है
ऐसी मान्यता है यहाँ दोपहर में आज भी विष्णु और शिव अपने समस्त देवी देवताओ के साथ भी स्नान ध्यान करने आते है। इसलिए स्थानीय लोगो के साथ दक्षिण भारतीय लोग यहाँ दोपहर में स्नान करने आते है। कुंड के बगल में स्थित अलवर मंदिर के खानदानी पुजारी कमल कान्त शर्मा ने बताया स्कन्द पुराण के काशीखण्ड के अनुसार सृष्टि काल के आरम्भ में भगवान् विष्णु ने यहाँ 80 हजार वर्षो तक तपस्या किया था। उन्होंने ही इसे अपने चक्र से इसका निर्माण किया ,इस लिए इसे चक्र पुष्करणी भी कहते है। बाद में इसमें शिव और पार्वती ने प्रसन्न होकर स्नान किया। स्नान के पहली डुबकी के बाद हर्ष से जब दोनों ने अपना माथा झटका तब शिव की मणि और पार्वती का कुण्डल गिर गया ,तभी से इसका नाम मणिकर्णिका कुंड पड़ा।
नाम चक्र पुष्करणी मणिकर्णिका तीर्थ
वैसे इसका पूरा नाम चक्र पुष्करणी मणिकर्णिका तीर्थ है। यहाँ दोपहर स्नान के बारे में बताया की आदि शंकराचार्य ने अपने मणिकर्णिका स्रोत में लिखा है “माध्याने मणिकर्णिका हरिहरो सायुज्य मुक्ति प्रदौ “यानि मध्यान में यहाँ स्नान करने वालो को शिव और विष्णु दोनों लोग अपने सानिध्य में लेकर मुक्ति प्रदान कर देते है। इसलिए लोग मान्यता के अनुसार की दोपहर में भगवान यहाँ स्वयं स्नान करते है इसलिए लोग दोपहर में स्नान करने आते है।
विष्णु चरण पादुका