
वाराणसी। महादेव की नगरी काशी में सभी अपनी मुक्ति यानि मोक्ष प्राप्ति की इच्छा रखकर आते है ऐसे में अब काशी के महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर आधुनिक लकड़ी का शवदाहगृह बनाया जा रहा है। यह न सिर्फ सनातन परंपरा का संरक्षण करेगा बल्कि पर्यावरण को भी स्वच्छ रखेगा। जल्द ही काशी में आने वाले लोगों को यह सुविधाएं मिलेंगी। काशी में आधुनिक तकनीक से बनेगा मणिकर्णिका घाट का शवदाहगृह वाराणसी में दो श्मशान घाट है। एक महाश्मशान मणिकर्णिका और दूसरा हरिश्चंद्र घाट पर बना हुआ है। इन दोनों श्मशान घाट पर इलेक्ट्रॉनिक चिमनी लगीं हुईं हैं। यहां इलेक्ट्रॉनिक रूप में शवदाह किया जाता है।पर इनमें से मणिकर्णिका घाट पर सबसे ज्यादा शवदाह किया जाता है, धार्मिक मान्यताओं के अनुसार बहुत कम ही लोग इस इलेक्ट्रॉनिक शवदाह गृह में शवदाह कराते हैं। इसलिए ज्यादा भीड़ लकड़ी से होने वाले क्षेत्र में होती है। वाराणसी के मंडलायुक्त दीपक अग्रवाल कहते है की अगर आधुनिक लकड़ी का शवदाह गृह बन जाएगा, तो इस क्षेत्र पर भीड़ भी कम रहेगी और प्रदूषण भी कम होगा। तकनीक का होगा इस्तेमाल शवदाह गृह में जहां कम लकड़ी में शवदाह हो जाएगा, वहीं प्रदूषण से भी मुक्ति मिलेगी। इसकी संरचना की बात करें तो यह शवदाह गृह एक बड़े से बंद बॉक्स की तरह होगा, जिसके चारों तरफ अभ्रक की ईंटें लगी होंगी। साथ ही, इसमें एक चिमनी भी होगी।शवदाह के लिए इसके अंदर एक स्ट्रेचर ट्राली रहेगी, जिसमें शव रखकर मुखाग्नि दी जाएगी। उसकी प्रक्रिया होगी कि सबसे पहले ट्राली पर लकड़ी, उसके ऊपर शव फिर उसके ऊपर लकड़ी रखी जाएगी, फिर इस ट्राली को बॉक्स के अंदर बंद कर दिया जाएगा। खास बात यह है कि, इसमें लगी अभ्रक की ईंटें महज एक घंटे में शव को जला देगी। चिमनी पर लगा वाटर स्प्रिंकल शवदाह से निकलते धुंए पर पड़ेगा जो धुंए की राख को वायुमंडल तक नहीं पहुंचने देगा।जल्द ही वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर इस प्रकार के दो शवदाहगृह बनाए जाएंगे। इसको लेकर के एक संस्था आगे आई है, जो इसके लिए डोनेट करेगी। इसको बनाने में करीब एक करोड़ रुपये की लागत आएगी। यह महाश्मशान नाथ मंदिर के पास ही बनाया जाएगा। इससे जहां एक ओर लकड़ी की खपत कम होगी। वहीं, इको फ्रेंडली भी होगा क्योंकि सामान्य तौर पर शवदाह के लिए लगभग 3 क्विंटल लकड़ी का प्रयोग होता है। और 3 से 4 घंटे में यह संपन्न होता है, लेकिन इस तकनीक से यह एक से डेढ़ घंटे में हो जाएगा।