कहानीसंस्कृति

सांस्कृतिक राजधानी काशी का अनोखा अधिवक्ता जो संस्कृत में लड़ता है केस बहस भी संस्कृत में और जज भी फैसला दे चुके है संस्कृत में

ऐसे वकील साहब हैं जिन्होंने संस्कृत में वकालत करते हुए 38 बसंत बिता दिए

वाराणसी। आज के दौर में भले ही ये बात असहज लगे, जब लोग हिंदी से दूर होते जा रहें हैं, लेकिन ये सच है कि वाराणसी में एक ऐसे वकील साहब हैं जिन्होंने संस्कृत में वकालत करते हुए 38 बसंत बिता दिए। वाराणसी कचहरी में लगभग 60 साल के वकील के 38 वर्षों की संस्कृत में वकालत में जजों ने कई फैसले भी संस्कृत में दिए।  इनकी 50 से ज्यादा किताबों की रचना में काव्य ग्रन्थ, कानून, दर्शन और बौद्ध दर्शन के अलावा कई रोचन किताबे भी हैं।ये है श्याम जी उपाधयाय जो पिछले 40 सालो से इसी तरह कचहरी के अपने चौकी पर बैठकर हजारो के केस लड़ चुके है 1976 से वकालत करने वाले आचार्य पण्डित श्यामजी उपाध्याय 1978 में अधिवक्ता के तौर पर पंजिकृत हुंए। जिसके बाद से इन्होंने देववाणी संस्कृत को ही तरजीह दी। सभी अदालती काम जैसे- शपथपत्र, प्रार्थनापत्र, दावा, वकालतनामा और यहाँ तक की बहस भी संस्कृत में बहस भी करते चले आ रहें हैं।

श्याम जी उपधाय

श्यामजी को आज भी बचपन में पिता जी की बात नहीं भूलती जब उन्होंने कहा था कि कचहरी में काम हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू में होता है पर संस्कृत भाषा में नहीं। यहीं बात श्यामजी के मन में घर कर गई और उन्होंने संस्कृत भाषा में वकालत करने की ठानी और ये सिलसिला आज भी चार दशकों तक जारी है। संस्कृत भाषा में कोर्टरूम में बहस सहित सभी लेखनी प्रस्तुत करने पर सामने वाले पक्ष को असहजता होने के सवाल पर श्यामजी ने बताया कि वो संस्कृत के सरल शब्दों को तोड़-तोड़कर प्रयोग करते है। जिससे जज से लेकर विपक्षियों तक को कोई दिक्कत नहीं होती है और अगर कभी सामने वाला राजी नहीं हुआ तो वो हिंदी में वो अपनी कार्यवाही करते हैं।संस्कृत अधिवक्ता के नाम से मशहूर संस्कृत भाषा के अभूतपूर्व योगदान के लिए वर्ष 2003 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा “संस्कृतमित्रम्” नामक राष्ट्रिय पुरस्कार से तात्कालिक मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी ने दिल्ली में पुरस्कृत किया था। लगभग 5 दर्जन से भी अधिक अप्रकाशित रचनाओं के अलावा श्यामजी की 2 रचनाएं “भारत-रश्मि” और “उद्गित” प्रकाशित हो चुकि है।इनका ये भी कहना है की संस्कृत में इतने लंबें समय तक वकालत करने वाला कोई और नहीं है इसलिए अब ये अपना नाम गिनीज बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज कराना चाहते है.वाराणसी के आनंद प्रकाश यादव उन्ही लोगों में से एक है। जिनपर लगे हत्या के आरोप को गलत साबित करते हुए श्यामजी ने संस्कृत में मुकदमा लड़कर जीत दिलाई। आनंद बताते हैं कि श्यामजी ने उनका पूरा मुकदमा संस्कृत भाषा में लड़ा और उन्हे जीत दिलाई। संस्कृत भाषा को लेकर श्याम जी का जुनून यहीं पर नहीं थमा। कचहरी खत्म होने बाद शाम का वक्त इनका अपने चौकी पर संस्कृत के छात्रों और संस्कृत के प्रति जिज्ञासु वकिलों को पढ़ा कर बितता है और संस्कृत भाषा की यह शिक्षा श्यामजी निशुल्क देते हैं।इन्ही में से एक है वाराणसी सम्पूर्णानंद संस्कृत वि वि में आचार्य यानि एम.ए. पहले वर्ष के छात्र सतीश जो पहले संस्कृत में असहज महसूस करते थे पर आज श्यामजी के सानिध्य में निशुल्क संस्कृत में शिक्षा पाकर इनका आत्मविश्वास लौट आया है।

कचहरी जाते रोज सुबह श्याम जी

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button