कहानी

कूड़ा भी बना वयापार तैयार हुआ काशी में अनोखा स्क्रैपशाला

कूड़े से बना डाला ऐसा सामान जो लोगो की बनी पसंद

वाराणसी। रवींद्रपुरी स्थित स्क्रैपशाला में को वेस्ट मैटेरियल से बनी उपयोगी वस्तुओं की प्रदर्शनी लगाई गई। उद्घाटन एयरपोर्ट निदेशक आर्यमा सान्याल ने किया। उन्होंने कहा कि रचनात्मकता का सम्मान होना चाहिए। स्क्रैपशाला की प्रमुख शिखा शाह ने कहा कि यह एक इको फ्रेंडली वेंचर है। हम प्रकृति के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए ऐसे आयोजन करते हैं।

दरसल इस दुनिया में कुछ भी ‘कबाड़’ या ‘बेकार’ नहीं है। जो आपके लिए ‘कबाड़’ है, हो सकता है किसी और के लिए रोजगार का साधन हो। सबसे दिलचस्प बात यह है कि हमारे देश में बहुत से ऐसे लोग हैं, जो इस बात को सच करके दिखा रहे हैं। आज हम आपको वाराणसी की शिखा शाह से मिलवा रहे हैं, जो पिछले पांच सालों से ‘कबाड़’ को नया रूप देकर उपयोगी चीजें बना रही हैं।

स्क्रैपशाला बनाने वाली शिखा

इसके जरिए, वह तरह-तरह के उत्पाद बनाकर ग्राहकों को उपलब्ध कराती हैं। पेन स्टैंड, बांस का टूथब्रश, नेमप्लेट, होम-डेकॉर के अलावा, वह ऑर्डर मिलने पर अपसायकल किया हुआ फर्नीचर भी बनाती हैं। जैसे- पुराने टायरों से स्टूल-कुर्सी या मेज बनाना आदि। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रैजुएशन करने वाली, शिखा ने कभी बिज़नेस करने के बारे में नहीं सोचा था। लेकिन, कहते हैं न कि जिंदगी आपके मुताबिक नहीं चलती। कई बार आपके अनुभव, आपके भविष्य की दिशा तय कर देते हैं।

शिखा साल 2016 में, अपने घर वाराणसी लौटीं। यहां भी कचरे की समस्या तो थी, लेकिन एक और बात उन्होंने यहां समझी कि लोग बहुत से कचरे को अपने घर के कोने में सहेजकर रखते हैं। क्योंकि, पुरानी चीजों को फिर से उपयोग करने की भारतीय सोच, उन्हें कोई भी चीज आसानी से फेंकने नहीं देती है। लेकिन, यह सोच कारगर तभी हो सकती है, जब सही मायनों में इस कचरे को काम में लाया जाए। शिखा ने इसकी शुरुआत अपने घर से ही की। उन्होंने अपने घर में रखी कुछ कांच की बोतलों को पेंट करके, उन्हें नया रूप देने की कोशिश की।

वह बताती हैं, “इस कला में माहिर होने में मुझे भी कई महीने लगे। लेकिन इतना जरूर था कि मुझे चीजों को देखकर समझ में आ जाता था कि इनसे क्या बनाया जा सकता है। वाराणसी कला का शहर है। यहां हर गली-मोहल्ले में आपको एक से बढ़कर एक कारीगर मिलेंगे। लेकिन इन कारीगरों को ढूँढना जितना आसान था, उन्हें अपने साथ रख पाना उतना ही मुश्किल था।

लगभग 15 हजार रुपए के निवेश से शिखा ने अपने कूड़े से वयापार स्क्रैपशाला की शुरुआत की। उन्होंने कबाड़ीवालों से पुरानी चीजें खरीदीं। कुछ लोगों ने उन्हें अपने घर में पड़ी बेकार-पुरानी चीजें भी दी। शिखा कहती हैं कि शुरुआत में ये सब करना बहुत मुश्किल था, क्योंकि यह बहुत ही अव्यवस्थित क्षेत्र है। आप जो चीजें लेकर आ रहे हैं, आपको भी नहीं पता कि उनसे आप क्या बनाने वाले हैं। फिर जिन कारीगरों को उन्होंने शुरू में रखा, उन्हें भरोसा दिलाना बहुत मुश्किल था कि उनके बनाए इन नए तरह के उत्पादों को कोई खरीदेगा। शिखा कहती हैं कि उन्होंने इस स्क्रैप वयापार की शुरुआत, पर्यावरण को ध्यान में रखकर की थी। लेकिन, आज इसके जरिए वह स्क्रैप यानी की कचरे के प्रति लोगों का नजरिया भी बदल रही हैं। साथ ही, कई लोगों को एक सम्मानजनक रोजगार दे पा रही हैं। स्क्रैपशाला का सालाना टर्नओवर आज 10 लाख रुपए से ज्यादा है।

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